दक्षिण भारत के प्रसिद्ध 11 मंदिर – Top 11 temple of south india – rajasthan classes

दक्षिण भारत के मंदिर सिर्फ भारत में ही नहीं, पुरे विश्व में काफी प्रचलित हैं। यहां स्थित मंदिरों से उनकी प्राचीनता और वैभव साफ झलकता है। भारत को एक समृद्ध संस्कृति वाले देश के रूप में पहचान दिलाने में इन मंदिरों और उनकी रचनाएँ काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।

1. तिरुपति बालाजी मंदिर: –

तिरुपति बालाजी मंदिर: –

आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित मंदिर सम्पूर्ण भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है। तिरुपति पहाड़ की सातवीं चोटी पर स्थित यह स्वामी वेंकेटेश्वर मंदिर, श्री स्वामी पुष्करिणी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है।

दरअसल वेंकट पहाड़ी का स्वामी होने के कारण ही इन्हें वेंकटेश्वर कहा जाने लगा। मुख्य मंदिर के प्रांगण में स्थित गर्भगृह में भगवान वैंकटेश्चर की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर परिसर में खूबसूरती से बनाए गए अनेक द्वार, मंडपम और छोटे मंदिर हैं जो अपने आप में काफी महत्व रखते हैं।

इसके अलावा मंदिर परिसर में मुख्य दर्शनीय स्थल के रूप में पडी कवली महाद्वार संपंग प्रदक्षिणम, कृष्ण देवर्या मंडपम, रंग मंडपमध्वजस्तंभ मंडपम, नदिमी पडी कविली, विमान प्रदक्षिणम, तिरुमला राय मंडपम, आईना महल आदि हैं, जो न सिर्फ श्रद्धा की दृष्टिकोण से बल्कि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।

तिरुपति का भक्तिमय वातावरण मन को श्रद्धा और आस्था से भर देता है। पुराण व अल्वर के लेख जैसे प्राचीन साहित्य स्रोतों के अनुसार कलयुग में भगवान वेंकटेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात ही मुक्ति संभव है।

इसीलिए पचास हजार से भी अधिक श्रद्धालु इस मंदिर में प्रतिदिन दर्शन के लिए आते हैं। तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास 9वीं शताब्दी से प्रारंभ होता है, जब काँचीपुरम के शासक वंश पल्लवों ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था। आपको बता दें कि भारत के सबसे अमीर मंदिरों में इस मंदिर का नाम शीर्ष पर आता है।


2. श्री रंगनाथमस्वामी मंदिर, श्रीरंगम (तिरुचिरापल्ली)TamilNadu

श्री रंगनाथमस्वामी मंदिर, श्रीरंगम (तिरुचिरापल्ली)TamilNadu

हिन्दू भगवान रंगनाथम को समर्पित ये मंदिर दक्षिण भारत के काफी प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। जिसमें भगवान विष्णु अपने लेते हुए अवतार में उपस्थित हैं। यह मन्दिर तमिलनाडू के तिरुचिरापल्ली शहर के श्रीरंगम नामक द्वीप पर स्थित है।

156 एकड़ में फैले इस मंदिर परिसर में जो मुख्य मंदिर है वो काफी भव्य है। पूर्ण रूप से पत्थर से निर्मित ये मंदिर विश्व का सबसे विशाल क्रियाशील हिन्दू मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। कावेरी नदी के तट पर स्थित इस मंदिर को भू-लोक का वैकुंठ भी कहा जाता है और ये भगवान विष्णु को संर्पित 108 दिव्य दशमों में से एक है।

इस विशाल मंदिर परिसर का क्षेत्रफल लगभग 6,31,000 वर्ग मी (156 एकड़) है और परिधि 4116 मी है। मंदिर के विमानम (गर्भगृह के ऊपर की संरचना) का ऊपरी भाग सोने से जड़ा हुआ है। यहाँ आपको शांति की एक अलग अनुभूति होगी।


3. मीनाक्षी अम्मन मंदिर:-

मीनाक्षी अम्मन मंदिर:-

मंदिर माता पार्वती को समर्पित है जो कि इस मंदिर में मीनाक्षी के रूप में विराजमान हैं। उनके साथ उनके पति भगवान भोले भी विराजमान हैं जो कि इस मंदिर के सुंदरेश्वर के नाम से जाने जाते हैं। तमिलनाडू के मदुरै शहर में स्थित ये मंदिर प्राचीन भारत के सबसे भव्य और महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है।

भारत के सबसे अमीर मंदिरों में से एक इस मंदिर का मुख्य गर्भगृह 3500 वर्ष से अधिक पुराना माना जाता है। हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव सुंदरेश्वर रूप में अपने गणों के साथ पाड्य राजा मलयध्वज की पुत्री राजकुमारी मीनाक्षी से विवाह रचाने मदुरै नगर आए थे, क्योंकि मीनाक्षी देवी मां पार्वती का रुप हैं। इस विशाल भव्य मंदिर का स्थापत्य एवं वास्तु के काफी रोचक होने के कारण माँ के इस मंदिर को सात अजूबों में नामांकित किया गया है।


4. पद्मनाभस्वामी मंदिर : –  

पद्मनाभस्वामी मंदिर : –  

तिरुअनन्तपुरम में स्थित भगवान विष्णु का यह प्रसिद्ध हिन्दू के प्रमुख वैष्णव मंदिरों में शामिल किया जाता है।

पद्मनाभ स्वामी मंदिर के बारे में ये मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान से विष्णु भगवान की प्रतिमा प्राप्त हुई थी, जिसके बाद उसी स्थान पर इस मंदिर का निर्माण किया गया है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। केरल के तिरुअनंतपुरम में स्थित यह प्रसिद्ध धार्मिक स्थल के एक तरफ तो खूबसूरत समुद्र तट है और दूसरी ओर पश्चिमी घाट में पहाडि़यों का अद्भुत नैसर्गिक सौंदर्य।

इसका स्थापत्य देखते ही बनता है। मंदिर के निर्माण में महीन कारीगरी का भी कमाल देखने योग्य है। मंदिर की संरचना में सुधार कार्य किए गए जाते रहे हैं। उदाहरणार्थ 1733 ई. में इस मंदिर का पुनर्निर्माण त्रावनकोर के महाराजा मार्तड वर्मा ने करवाया था।

पद्मनाभस्वामी मंदिर का नाम हो सकता है कि आपने पहले भी सुना हो क्योंकि 2011 में अदालत और मंदिर ट्रस्ट ने मिलकर इसके खजाने को गिना था। तब उसकी कुल कीमत 132000 करोड़ बताई गई थी। हालांकि उसका एक द्वार अभी तक नही खोला जा सका है। 


5. नटराजा मंदिर, चिदंबरम – तमिल नाडु

5. नटराजा मंदिर, चिदंबरम – तमिल नाडु

इस मंदिर को चिदंबरम मंदिर और नटराजा मंदिर के नाम से भी जानते हैं। नटराज के रूप में भगवान शिव को समर्पित इस मन्दिर में पूरे भारत के लोग भगवान शंकर का आशीर्वाद लेने आते हैं। चिदंबरम के इस मंदिर में प्रवेश के लिए मूर्तियों तथा अनेक प्रकार की चित्रकारी का अंकन वाले भव्य गोपुरम बने हैं, जो नौ मंजिले हैं।

इसका सभागृह एक हजार से अधिक स्तम्भों पर टिका है। इनके नीचे 40 फुट ऊँचे, 5 फुट मोटे ताँबे की पत्ती से जुड़े हुए पत्थर के चौखटे हैं तथा मंदिर के शिखर के कलश सोने के हैं। इन सब नक्काशियों को देखकर आपका मन अपने आप ही प्रफुल्लित जो जाएगा।

मंदिर के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह भारत के पांच पवित्र शिव मंदिरों में से एक है। इसकी विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह 40 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। यह मंदिर भगवान शिव के एक अन्य रूप नटराज और गोविंदराज पेरुमल को समर्पित है, जो अति प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर है। इस मंदिर के बारे में लोग यही कहते हैं कि देश में बहुत कम मंदिर ऐसे हैं, जहां शिव व वैष्णव दोनों देवता एक ही स्थान पर प्रतिष्ठित हैं।


6. बृहदेश्वर मंदिर तंजावुर

6. बृहदेश्वर मंदिर तंजावुर

तमिलनाडु के तंजौर में स्थित इस मंदिर को आप दो नजरिये से देख सकते हैं। एक तो इसकी वैज्ञानिकता से परिपूर्ण बनावट की दृष्टिकोण से और दूसरा धार्मिकता के दृष्टिकोण से।

भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर की वास्तुकला यानी संरचना सुंदरता और मोहकता से परिपूर्ण है तो दूसरी तरफ ये एक रहस्य को भी जन्म देती हुई प्रतीत होती है। दरअसल इस मंदिर की संरचना कुछ इस प्रकार से बनाई गई है कि इसके गुम्बद की छाया कभी भी जमीन पर नही पड़ती।

इस मंदिर का निर्माण ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है जबकि उस क्षेत्र में सैकड़ों मील दूर-दूर तक उस पत्थर का कोई स्त्रोत मौजूद नही है। इसीलिये इसे चमत्कारी मंदिर भी कहा जाता था। इन्ही सब चीजों को देखते हुए यूनेस्को ने इस मंदिर को विश्व विरासत की सूची में शामिल कर लिया है। इस मंदिर का निर्माण 1010 ईसवी में राजा चोला प्रथम ने कराया था।


7. चामुंडेश्वरी मंदिर – तमिलनाडु

7. चामुंडेश्वरी मंदिर – तमिलनाडु

मैसूर (कर्नाटक)में उपस्थित चामुंडी नामक पहाड़ियों पर स्थित यह चामुंडेश्वरी मंदिर हिन्दुओं का प्रमुख धार्मिक स्थान है। दुर्गा जी की ही रूप मानी जाने वाली चामुंडेश्वरी देवी को समर्पित यह मंदिर चामुंडी पहाड़ी पर स्थित है, जोकि दुर्गा जी द्वारा राक्षस महिषासुर के वध का प्रतीक माना जाता है। इस पहाड़ी पर महिषासुर की एक ऊंची मूर्ति है और उसके बाद मंदिर है।

बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में किया गया था। अगर आप दसहरा पर इस मंदिर में जाएं तो सबसे बेहतर होगा क्योंकि चामुंडेश्वरी मंदिर में आयोजित होने वाला दशहरा का उत्सव हर वर्ष बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।

असत्य पर सत्य की जीत का यह त्यौहार वैसे तो देश भर में मनाया जाता है। परंतु इसका रंग मैसूर में बड़ा ही निराला दिखाई पड़ता है। दस दिन तक मनाया जाने वाला यह उत्सव देवी चामुंडा द्वारा महिषासुर के वध का प्रतीक है। इस दौरान यहां पर कई धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। अगर आप उस पहाड़ी से मैसूर को देखना चाहते हैं तो मंदिर परिसर के बाहर पश्चिम दिशा में स्टेडियम की तरह सीढि़यां बनाई गई हैं जिन पर बैठकर आप मैसूर शहर की रोशनी देख सकते हैं।


8. त्यागराजस्वामी मंदिर :-

तमिलनाडु के तिरुआरुर में स्थित ये प्रसिद्ध त्यागराज स्वामी मंदिर भगवान शिव के एक रूप सोमस्कन्दर को समर्पित है। भगवान शिव के इस मंदिर में मूलान्तर नाम से विराजमान है और उनके साथ उनकी पत्नी माता पार्वती हैं।

दक्षिण का कैलाश कहा जाने वाला यह मंदिर लगभग 30 एकड़ में फैला हुआ है। इसी के साथ ही इस मंदिर का नाम भी भारत के बड़े मंदिरों में शामिल किया जाता है। यहां पर हजारों लोग रोज भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं। यहाँ पर 12 वर्ष में एक बार अप्रैल महीने में होने वाला रथ महोत्सव काफी धूमधाम से मनाया जाता है जोकि देखने वालों का दिल जीत लेता है।


9. अन्नामलाई मंदिर – तमिलनाडु

तमिलनाडु के तिरुवनमलाई जिले में भगवान शिव को समर्पित ये मंदिर एक अनूठा मंदिर है। अन्नामलाई पर्वत की तराई में स्थित इस मंदिर को अनामलार या अरुणाचलेश्वर शिव मंदिर भी कहा जाता है। वास्तव में ये 2668 फ़ीट की ऊंचाई वाला अन्नामलाई पर्वत ही शिव का प्रतीक है। इसके स्थापत्यकला को देखकर अंदाजा लगया जाता है कि इसका निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ था।

तिरुवनमलाई शहर में कुल आठ दिशाओं में आठ शिवलिंग- इंद्र, अग्नि, यम, निरूथी, वरुण, वायु, कुबेर, इशान लिंगम स्थापित हैं। मान्यता है कि हर लिंगम के दर्शन के अलग-अलग लाभ प्राप्त होते हैं। यहां हर पूर्णिमा को श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। खासतौर पर कार्तिक पूर्णिमा पर विशाल मेला लगता है और मंदिर में शानदार उत्सव होता है। इसे कार्तिक दीपम कहते हैं। इस मौके पर विशाल दीपदान किया जाता है। जोकि आपको अभीभूत कर देगा।


10. श्रीकृष्ण मंदिर : –

केरल के गुरुवायुर में स्थित इस मंदिर के बार में कहा जाता है कि ये भगवान कृष्ण का पहला मंदिर है। दक्षिण की द्वारका के नाम से भी पुकारा जाने वाला ये मंदिर केरल के त्रिशूर से लगभग 29 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। जोकि केरल के लोकप्रिय तीर्थ स्थलों में से एक है। इस मंदिर के बारे में नारद पुराण में भी जिक्र मिलता है। मंदिर के प्रमुख देवता भगवान गुरुवायुरप्पन हैं जो बालगोपालन (कृष्ण का बालरूप) के रूप में हैं। जोकि चार हथियार लिए हैं, ये हथियार हैं: शंख, सुदर्शन चक्र, खोउमुदकि और एक कमल।

माना जाता है कि ये मूल रूप से पांच हजार साल पुराना है और 1638 ईस्वी में इसका पुनर्निर्माण करवाया गया था। यह ​मंदिर केरल श्रेणी का बना है और यहां सिर्फ हिंदुओं को ही प्रवेश दिया जाता है। श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए इसे भारत के प्रमुख चार मंदिरों में स्थान दिया जाता है। सुरक्षा कारणों से मोबाइल फोन और कैमरा साथ रखने की इजाजत नहीं। इसलिए अच्छा होगा कि आप होटल में ही मोबाइल, कैमरा और सैंडल रख कर आएं।


11. वीरभद्र मंदिर :

आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिला के लेपाक्षी के निकट स्थित ये प्राचीन मंदिर भगवान शिव के अवतार, वीरभद्र को समर्पित है। मंदिर के तीन मुख्य भाग हैं- मुख/रंग मंडप, अर्ध मंडप, और गर्भगृह। मंदिर में वीरभद्र स्वामी की मूर्ति के अलावा गणेशजी, शिवजी, विष्णूजी, देवी दुर्गा, श्री राम, हनुमान और रघुनथजी की मूर्तियाँ भी स्थापित की गयी हैं। यह मंदिर अपनी अद्भुत शिल्प शैली के लिए भी जाना जाता है। मंदिर के पीछे नाग लिंग की 12 फीट उँची मूर्ति भी देखी जा सकती है।

स्कंद पुराण के अनुसार, यह मंदिर भक्तों की मध्य दिव्यक्षेत्र होने के कारण भी अत्यधिक प्रचलित है। मंदिर अपने भव्य वास्तु और शिल्प शैली के लिए भी जाना जाता है। इसकी एक खासियत ये भी है कि 108 स्तम्भों पर बनी इस मंदिर का एक स्तम्भ नीचे से जमीन में नही छुआ है। भक्तगण उस स्तम्भ के नीचे से अपने कपड़ों को आर-पार कर देते हैं। इस रहस्य का पता अबतक नही चल पाया है कि ऐसे कैसे बनाया जा सका है।

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