राजस्थान के संत संप्रदाय नोट्स डाउनलोड – RAJASTHAN GK FREE NOTES

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(राजस्थान में सगुण भक्ति धारा के सम्प्रदाय)

शैव सम्प्रदाय➜
भगवान शिव की उपासना करने वाले शैव कहलाते है। शैव धर्म की प्रधान पीठ / केंद्र एकलिंगजी का मंदिर (उदयपुर) है। शैव मत के आधार पर शैव सम्प्रदाय- मध्यकाल तक शैव मत के प्रमुख चार सम्प्रदाय थे, जिनके नाम निम्न प्रकार है –
■ कापालिक (भैरव को शिव का अवतार मानकर पूजा करते है)
■ लिंगायत
■ पाशुपत / पशुपति (प्रवर्तक दंडधारी लकुलीश)
■ काश्मीरक

नाथ सम्प्रदाय➜
नाथ सम्रदाय के प्रवर्तक नाथ मुनि थे। नाथ सम्प्रदाय के प्रथम गुरु गोरखनाथ थे। नाथ सम्प्रदाय की प्रधान पीठ / अग्रिम पीठ महामंदिर (जोधपुर) है, जिसका निर्माण मानसिंह ने करवाया था। जोधपुर नाथ सम्प्रदाय का प्रमुख केंद्र रहा है। नाथ सम्प्रदाय की दो शाखाएं है, जिनके नाम निम्न प्रकार है –
■ बैराग पंथ
■ माननाथी पंथ

शाक्त सम्प्रदाय➜
शाक्त सम्प्रदाय के अनुयायी मतावलम्बी शक्ति (दुर्गा) के विभिन्न रूपों की पूजा करते है। इस सम्प्रदाय के अनुयायियों ने देवी के विभिन्न रूप में अनेकानेक मंदिर बनवाये ।

वैष्णव सम्प्रदाय➜
वैष्णव सम्प्रदाय की प्रमुख शाखाएं निम्न है – रामानुज (रामावत) सम्प्रदाय, रामानंदी सम्प्रदाय, निम्बार्क सम्प्रदाय, वल्ल्भ सम्प्रदाय (पुष्टिमार्ग), ब्रह्म या गौड़ीय सम्प्रदाय | इनका विस्तार से वर्णन निम्न प्रकार है:-
■ रामानुज (रामावत) सम्प्रदाय
इसका प्रवर्तन रामानुजाचार्य ने किया था। इसकी प्रधान पीठ गलताजी (जयपुर) में है।

■ वल्लभ सम्प्रदाय – इसके प्रवर्तक वल्लभाचार्य (श्रीकृष्ण के बालरूप की पूजा ) थे। इनकी प्रधान पीठ नाथद्वारा (राजसमंद) में है तथा दूसरी पीठ कोटा में है। इस सम्प्रदाय का सम्बोधन “श्रीकृष्ण शरणम ममः” है।

■ रामानंदी सम्प्रदाय – इसके प्रवर्तक रामानंदजी थे। यह सम्प्रदाय सगुण भक्ति धारा की उपासना करता है। इसकी प्रधान पीठ गलताजी (जयपुर) में है, जिसके संस्थापक पयहारी कृष्णदासजी है।

■ निम्बार्क सम्प्रदाय – इस सम्प्रदाय को सनकादि सम्प्रदाय या हंस सम्प्रदाय भी कहते है। इसके संस्थापक/प्रवर्तक निम्बकाचार्य थे। इसकी प्रधान पीठ सलेमाबाद (किशनगढ़, अजमेर) में है तथा दूसरी पीठ उदयपुर में है।

■ ब्रह्म या गौड़ीय सम्प्रदाय – इसका प्रवर्तन स्वामी मध्वाचार्य द्वारा किया गया। इस सम्प्रदाय की प्रधान पीठ गोविंददेवजी का मंदिर (जयपुर) में है। कच्छवाह वंश के शासक अपने आप को गोविंददेवजी का दीवान मानते थे।


(निर्गुण भक्ति धारा के संत एवं सम्प्रदाय)

जसनाथजी (जसनाथी सम्प्रदाय)➜
■ जसनाथजी का जन्म – कतरियासर (बीकानेर) में कार्तिक शुक्ल एकादशी वि.स. 1539 (1482 ईस्वी) को हुआ था।
■ जसनाथजी के पिता का नाम हम्मीर जाट।
■ जसनाथजी की माता का नाम रूपादे । –
■ जसनाथजी ने जसनाथी पंथ का प्रवर्तन कर निर्गुण- निराकार ब्रह्म की उपासना का उपदेश दिया।
■ जसनाथ जी एक विख्यात पर्यावरण प्रेमी थे।
■ जसनाथ जी की शिक्षा – गोरक्षपीठ के गोरख आश्रम में हुई।
■ जसनाथ जी के प्रमुख उपदेश – “सींभूधड़ा” व “कौड़ा ” ग्रंथ में संग्रहित हैं।
■ जसनाथजी ने गोरखनाथजी के पंथ से दीक्षित होकर गोरख मालिया (बीकानेर) में कठिन तपस्या कर ज्ञान की प्राप्ति की।
■ जसनाथी सम्प्रदाय की प्रधान पीठ कतरियासर – (बीकानेर)
■ जसनाथजी ने अनुयायियों के लिए 36 नियमों के साथ- जसनाथी सम्प्रदाय चलाया। इसका उदेश्य व्यक्ति व समाज के आचरण को शुद्ध एवं मर्यादित करना है।
■ नाथ सम्प्रदाय के 36 नियमों का पालन करने वाले लोग जसनाथी कहलाने लगे।
■ जसनाथी सम्प्रदाय के लोग जाल वृक्ष व मोर के पंख को पवित्र मानते है।
■ परमहंस – जसनाथी सम्प्रदाय के वे अनुयायी जो इस संसार से विरक्त हो चुके है, परमहंस कहलाते हैं।
■ जसनाथी सिद्ध जसनाथी सम्प्रदाय में भगवा वस्त्र पहनने वाले अनुयायी सिद्ध कहलाये
■ अंगारा नृत्य (अग्नि नृत्य) – यह नृत्य जसनाथी सिद्धों द्वारा किया जाता है। जसनाथी सम्प्रदाय के अनुयायियों द्वारा धधकते हुये अंगारों पर किया जाने वाला नृत्य है, इसमें जसनाथी अग्नि में प्रवेश करने से पहले फ्ते-फ्ते कहते है ।
■ जसनाथ जी को कतरियासर (बीकानेर) में सिकन्दर लोदी ने 500 बीघा जमीन उपहार में दी। यहीं पर उन्होंने जीवित समाधि ली।
■ जसनाथी संप्रदाय के लोग गले में काले रंग का धागा पहनते है।
■ जसनाथजी सम्प्रदाय की प्रमुख पाँच उप पीठें – मालासर (बीकानेर), लिखमादेसर (बीकानेर), पूनरासर (बीकानेर), बमलू (बीकानेर) एवं पाँचला (नागौर) है।

जाम्भोजी (विश्नोई सम्प्रदाय)➜
■ जाम्भोजी का जन्म – पीपासर (नागौर) में भाद्रपद कृष्णा अष्टमी (जन्माष्टमी) 1451 ईस्वी (विक्रम संवत 1508) को हुआ था।
■ जाम्भोजी के पिता का नाम ठाकुर लोहट पंवार । –
■ जाम्भोजी की माता का नाम – हंसा देवी ।
■ जाम्भोजी का मूल नाम – धनराज ।
■ जाम्भोजी के गुरु का नाम – गोरखनाथ । जाम्भोजी का प्रमुख कार्य स्थल (क्रीडास्थली)_- सम्भराथल (बीकानेर)
■ जाम्भोजी के उपनाम विष्णु के अवतार, पर्यावरण वैज्ञानिक, गूंगा- गहला ।
■ जाम्भोजी की मृत्यु – जाम्भोजी की मृत्यु मुकाम तालवा (नोखा, बीकानेर) में वि.सं. 1591 में हुई थी। यहीं पर जाम्भोजी ने समाधि ली थी।
■ भोज विश्नोई सम्प्रदाय / पंत का प्रवर्तन कर विष्णु की निर्गुण-निराकार ब्रह्म की उपासना का उपदेश दिया।
■ विश्नोई सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ – मुकाम तालवा (नौखा, बीकानेर)
■ जाम्भोजी ने अपने आराध्य देव को विष्णु कहा तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए गुरु के महत्व, विष्णु का नाम जप तथा सतसंग के महत्व को प्रतिपादित किया।
■ जाम्भोजी ने बिश्नोई सम्प्रदाय के अनुयायियों के लिए 29 नियम / सिद्धांत बनाये। इसी तरह बीस और नौ नियमों (कुल 29) को मानने वाले बीसनोई या बिश्नोई कहलाये।
■ जाम्भोजी ने ‘जम्भसंहिता’, ‘जम्भसागर’ और ‘बिश्नोई धर्म प्रकाश आदि प्रमुख ग्रन्थों की रचना की।
■ जाम्भोजी को पर्यावरण वैज्ञानिक कहा जाता है।
■ जाम्भोजी ने बिश्नोई सम्प्रदाय का प्रवर्तन 1485 में समराथल (बीकानेर) में किया।
■ बिश्नोई सम्प्रदाय के लोग जाम्भोजी को विष्णु का अवतार मानते है।
■ जाम्भोजी का मूलमंत्र – हृदय से विष्णु का नाम जपो और हाथ से कार्य करो।
■ विश्नोई सम्प्रदाय के प्रमुख तीर्थ स्थल – पीपासर (बागौर), मुकाम तालवा (बीकानेर), जाम्भा (फलौद – जोधपुर), रामड़ावास (पीपाड़-जोधपुर) तथा जांगलू (बीकानेर) आदि।
■ जाम्भोजी के कहने पर ही दिली के सुल्तान सिकंदर लोदी गौहत्या पर रोक लगाई थी।

संत दादूजी (दादू पंत)➜
संत दादूजी का जन्म- संत दादूजी का जन्म अहमदाबाद (गुजरात) में चैत्र शुक्ल अष्टमी वि.स. 1601 ईस्वी को हुआ था। लेकिन दादूजी की साधना एवं कर्म भूमि राजस्थान ही रही है।
■ ऐसी मान्यता है कि संत दादूजी साबरमती नदी (अहमदाबाद-गुजरात) में बहते हुए लोदीरामजी (सारस्वत ब्राह्मण) को संदूक में मिले थे।
■ संत दादूजी को “राजस्थान का कबीर” कहा जाता है, क्योंकि दादूजी ने कबीर की तरह लोक भाषा में राजस्थान निर्गुण भक्ति आंदोलन को फैलाया था।
■ 1574 ई. में दादू जी ने साम्भर में दादू सम्प्रदाय / पंथ की स्थापना की तथा मृत्यु के बाद इन्हें दादूपंथ नाम से जानने लगे।
■ दादूपंथ की प्रमुख पीठ – नरायणा (जयपुर) में है।
■ दादूजी ने अपना अंतिम समय यहीं नरायणा (जयपुर) में गुजारा था।
■ दादूदयाल के उपदेश दादूजी री वाणी, दादूजी रां दूहा ग्रंथों में संग्रहित है।
■ संत दादूजी का निवास स्थल ‘रज्जब द्वार’ कहलाता है।
■ संत दादूजी के गुरु इनके गुरु वृंदावन जी (बुडढन ) थे, – जोकि कबीर के शिष्य थे।
■ संत दादूजी के शिष्यों को ‘रज्जवात’ अथवा ‘रज्जब पंथी’ कहा जाता है।
■ दादूजी के 152 शिष्य थे। जिनमें से प्रमुख 52 शिष्य जिन्हें दादू पंथ के 52 स्तंभ कहा जाता है, जिनमें दो पुत्र गरीबदास एवं मिस्किनदास के अलावा बखनाजी, रज्जबजी, सुंदरदासजी, जगन्नाथ व माधोदासजी आदि प्रमुख शिष्य थे।
■ दादूपंथ के सत्संग “अलख दरीबा ” कहलाते है।
■ दादूजी का सिद्धांत – “ईश्वर केवल मनुष्य के सगुण को पहचानता है तथा उसकी जाति नहीं पूछता। आगामी दुनिया में कोई जाति नहीं होगी” |
■ दादूपंथी साधु विवाह नहीं करते है, वे गृहस्थी के बच्चों को गोद लेकर अपना पंथ चलाते है।
■ दादू पंथ की प्रमुख 4 शाखाएं – खालसा, विरक्त, उत्तरादे- स्तनधारी एवं खाकी ।

संत लालदासजी (लालदासी सम्प्रदाय)➜
■ लालदासजी का जन्म – मेवात प्रदेश (अलवर) के धोलीदूव गाँव में श्रावण कृष्ण पंचमी को 1540 ई. में हुआ।
■ लालदासजी के पिता का नाम – चांदमल ।
■ लालदासजी की माता का नाम – समदा ।
■ संत लालदासजी मेव जाति के लकड़हारे थे।
■ लालदास जी ने तिजारा (अलवर) के मुस्लिम संत गद्दन चिश्ती (मद्दाम) से दीक्षा ली थी तथा लालदासी सम्प्रदाय का प्रवर्तन कर निर्गुण भक्ति का उपदेश दिया।
■ लालदासी सम्प्रदाय की प्रधान पीठ – नगला (भरतपुर) में है।
■ लालदासी सम्प्रदाय के प्रमुख स्थल – शेरपुर तथा धोली दूव (अलवर), यहां पर लालदासी सम्प्रदाय का वार्षिक मेला लगता है।
■ संत लालदासजी की मृत्यु नगला गाँव (भरतपुर रियासत) में हुई थी। अलवर जिले के शेरपुर में इनका समाधि स्थल है।
■ लालदासजी की चेतावनियाँ लालदासजी का प्रमुख काव्य ग्रंथ है।

चरणदास जी (चरणदासी सम्प्रदाय)➜
चरणदास जी का जन्म – चरणदास जी का जन्म अलवर जिले में डेहरा नामक गाँव में 1703 ईस्वी (वि.सं. 1760 ) को हुआ था।
■ चरणदास जी के पिता का नाम – मुरलीधर |
■ चरणदास जी की माता का नाम – कुंजो देवी ।
■ चरणदास जी का प्रारम्भिक नाम रणजीत था। मुनि – शुकदेव से दीक्षा लेने के बाद इनका नाम चरणदास रखा गया।
■ चरणदासजी पीले वस्त्र पहनते थे।
■ चरणदासजी के प्रमुख ग्रन्थ – ब्रह्म ज्ञान सागर’, ‘ब्रह्मचरित्र’, ‘भक्ति सागर’ तथा ‘ज्ञान सर्वोदय’ है।
■ चरणदासी सम्प्रदाय के कुल 42 नियम है।
■ चरणदासी सम्प्रदाय की मुख्य पीठ – दिल्ली।
■ राजस्थान का एकमात्र संत जिसका जन्म राजस्थान में हुआ, परंतु इनके द्वारा चलाए गए चरणदासी संप्रदाय की मुख्य पीठ दिल्ली में है ।
■ चरणदासी सम्प्रदाय सगुण एवं निर्गुण भक्ति मार्ग का मिश्रण है।
■ चरणदासजी ने भारत पर नादिरशाह के आक्रमण की भविष्यवाणी की थी।

संत रामचरणजी ( रामस्नेही सम्प्रदाय की शाहपुरा शाखा) ➜
■ रामचरणजी का जन्म रामचरण जी का जन्म 24 – में फरवरी, 1720 ई. में सोडा ग्राम (जयपुर) में हुआ।
■ रामचरणजी के बचपन का नाम रामकिशन –
■ संत रामचरणजी के पिता का नाम बख्ताराम। –
■ संत रामचरणजी की माता का नाम – देऊजी
■ रामचरणजी की मृत्यु 5 अप्रैल, 1798 को शाहपुरा (भीलवाड़ा) में।
■ रामचरण जी एक रात को घूमते-घूमते मेवाड़ के शाहपुर चले गए। वहाँ दांतड़ा ग्राम में स्वामी श्री कृपाराम जी महाराज को अपना गुरू बना लिया । कृपारामजी से दीक्षा लेने के बाद इनका नाम रामकिशन से रामचरण रखा गया।
■ रामचरणजी ने रामस्नेही सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया।

रामस्नेही सम्प्रदाय की प्रधान पीठ – शाहपुरा (भीलवाड़ा)➜
■ रामस्नेही सम्प्रदाय की चार पीठे है – शाहपुरा, रैण, सिंहथल तथा खेड़ापा ।
■ रामस्नेही सम्प्रदाय का प्रार्थना स्थल ‘रामद्वारा’ कहलाता है।
■ फूलडोल महोत्सव रामस्नेही सम्प्रदाय द्वारा चैत्र कृष्ण एकम से चैत्र कृष्ण पंचमी तक शाहपुरा (भीलवाड़ा) में मनाया जाता है।
■ रामचरणजी के उपदेश इनके ग्रंथ “अणर्भवाणी” में संग्रहित है।
■ रामस्नेही सम्प्रदाय की शाहपुरा शाखा की नींव संत रामचरणजी ने डाली थी।

संत दरियावजी (रामस्नेही सम्प्रदाय की रैण शाखा)➜
■ संत दरियावजी का जन्म – दरियावजी का जन्म जैतारण (पाली) में जन्माष्टमी को हुआ था।
■ संत दरियावजी के पिता का नाम मानजी धुनिया |
■ संत दरियावजी की माता का नाम – गीगण।
■ संत दरियावजी ने रामस्नेही सम्प्रदाय की रैण शाखा ( दरिया पंथ) का प्रवर्तन किया था।
■ दरियावजी ने ईश्वर के नाम स्मरण एवं योग-मार्ग का उपदेश दिया था।
■ संत दरियावजी के गुरु प्रेमनाथजी ( बालकनाथजी), जिनसे ये रामस्नेही पंथ में दीक्षित हुए।
■ रामस्नेही सम्प्रदाय की रैण शाखा ( दरिया पंथ) की मुख्य पीठ – रैण (मेड़ता, नागौर)

संत हरिरामदासजी (रामस्नेही सम्प्रदाय की शाखा सिंहथल)➜
■ संत हरिरामदासजी का जन्म संत हरिरामदासजी का जन्म सिंहथल (बीकानेर) में हुआ था।
■ संत हरिरामदासजी के पिता का नाम भागचंद जी जोशी।
■ संत हरिरामदासजी के गुरु का नाम – जैमलदास जी ।
■ संत हरिरामदासजी ने गुरु जैमलदासजी रामस्नेही से पंथ की दीक्षा ली तथा रामस्नेही सम्प्रदाय की सिंहथल शाखा (बीकानेर) की स्थापना की।
■ रामस्नेही सम्प्रदाय की सिंहथल शाखा की प्रधान पीठ – सिंहथल (बीकानेर)
■ संत हरिरामदासजी की प्रमुख कृति ‘निशानी’ थी। इसमें प्राणायाम, समाधि एवं योग के तत्त्वों का उल्लेख है।

संत रामदासजी (रामस्नेही सम्प्रदाय की खेड़ापा शाखा)➜
■ संत रामदासजी का जन्म संत रामदासजी का जन्म भीकमकोर गांव (जोधपुर) में हुआ था।
■ संत रामदासजी के पिता का नाम – शार्दुल जी ।
■ संत रामदासजी की माता का नाम – श्रीमती अणमी।
■ रामस्नेही सम्प्रदाय की सिंहथल शाखा के प्रवर्तक हरिदासजी महाराज से पंथ की दीक्षा लेकर रामस्नेही सम्प्रदाय की खेड़ापा शाखा की स्थापना की थी।
■ संत रामदासजी की मृत्यु – खेड़ापा (जोधपुर) में हुई।
■ रामस्नेही सम्प्रदाय की खेड़ापा शाखा की प्रधान पीठ – खेड़ापा (जोधपुर) में।

संत हरिदासजी (निरंजनी सम्प्रदाय)➜
■ संत हरिदासजी का जन्म डीडवाना (नागौर) के निकट – कपड़ोद गांव में।
■ संत हरिदासजी की मृत्यु – गाढ़ा (नागौर) में। यहां पर इन्होने समाधि ली थी।
■ संत हरिदासजी का मूल नाम – हरिसिंह सांखला।
■ संत हरिदास जी ने निर्गुण भक्ति का उपदेश देकर ‘निरंजनी सम्प्रदाय’ चलाया था।
■ संत हरिदास जी को ‘कलियुग का वाल्मिकी’ कहा जाता है।
■ संत हरिदास जी के उपदेश मंत्र राज प्रकाश तथा ‘हरिपुरुष जी की वाणी’ में संग्रहित है।
■ संत हरिदास जी ने ‘तीखी डूंगरी पर जाकर घोर तपस्या की।

परनामी सम्प्रदाय➜
■ परनामी सम्प्रदाय के संस्थापक- प्राणनाथ जी।
■ परनामी सम्प्रदाय की प्रधान पीठ – पन्ना (मध्यप्रदेश) में।
■ परनामी पंथ के अनुयायी प्राणनाथ के उपदेशो के ग्रंथ “कुजलम स्वरूप” की पूजा करते है।
■ इनका प्रसिद्ध मंदिर जयपुर में है।

नवल सम्प्रदाय➜
■ नवल सम्प्रदाय के संस्थापक- नवल सम्प्रदाय के संस्थापक नवलदासजी थे, जिनका जन्म हरसौलाव गांव में हुआ था।
■ इनका प्रमुख मंदिर जोधपुर जिले में है।
■ इनके उपदेश ‘नवलेश्वर अनुभववाणी में संग्रहित है।

गूदड़ सम्प्रदाय➜
■ गूदड़ सम्प्रदाय के संस्थापक- संतदासजी ।
■ गूदड़ सम्प्रदाय की प्रधान पीठ – इसकी प्रधान पीठ दांतड़ा गांव (भीलवाड़ा) में है।

अलखिया सम्प्रदाय➜
■ अलखिया सम्प्रदाय के संस्थापक- स्वामी लालगिरी ।
■ स्वामी लालगिरी का जन्म चूरू जिले में हुआ था। अलखिया सम्प्रदाय की प्रधान पीठ – बीकानेर में।

(राजस्थान के अन्य प्रमुख सम्प्रदाय)

■ गौड़ीय सम्प्रदाय – इसके संस्थापक गौरांग महाप्रभु चैतन्य थे। इस सम्प्रदाय की प्रधान पीठ गोविंददेवजी का मंदिर (जयपुर) है।

■ तेरापंथी सम्प्रदाय- इस सम्प्रदाय के संस्थापक आचार्य – भिक्षु स्वामी थे, जिनका जन्म जोधपुर के कंटालिया गांव

■ दासी सम्प्रदाय – इस सम्प्रदाय की संस्थापक मीरां बाई थी।

■ रसिक सम्प्रदाय – इस सम्प्रदाय की स्थापना कृष्णदास पयहारी के शिष्य अग्रदास ने सीकर जिले के रैवासा नामक स्थान पर की थी।

■ बैरागिनाथ सम्प्रदाय – इस सम्प्रदाय की प्रधान पीठ (पुष्कर) में है।

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