जयपुर राज्य के सिक्के➜
माधोसिंह के रूपये को ‘हाली’ सिक्का कहते थे।जयपुर में तांबे के सिक्के का प्रचलन 1760 ईं. से माना जाता है। इसे झाड़शाही पैसा कहते थे।झाड़शाही सिक्के जयपुर में कच्छवाहावंश द्वारा प्रचलित सिक्के थे । झाड़शाही एक बोली का भी प्रकार है । जयपुर की टकसाल का चिह्न छ: शाखाओं वाला झाड होने के कारण जयपुरी सिक्कों को झाड़शाही सिक्के कहा गया है ।सवाई जयसिंह द्वितीय ने सन् 1728 ईं. में जयपुर नगर में इस टकसाल की स्थापना की ।सबसे अधिक सिक्के जयपुर/सवाई माधोपुर टकसाल के मिलते है। जयपुर की सिरहड्योढी बाजार ‘चांदी की टकसाल’ के नाम मे प्रसिद्ध है ।
जोधपुर राज्य के सिक्के➜
मारवाड़ में प्राचीन काल में ‘ पंचमार्क/ आहत ‘ सिक्कों का प्रचलन था । अकबर की चितौड़ विजय के बाद मेवाड़ में प्रचलित मुगल सिक्कों को एलची के नाम से जाना जाता है ।जोधपुर में बनने वाले सोने के सिक्कों को ‘मोहर’ कहते थे ।सोजत की टकसाल से निकलने वाले सिक्के ललूलिया कहलाते थे ।सोने के सिक्के मोहर कहलाते थे, जो जोधपुर की टकसाल में बनते थे । महाराजा विजयसिंह द्वारा प्रचलित होने के कारण ये ‘ विजयशाही’ कहलाते थे।मारवाड़ के शासकों में ‘विजयशाही’ सिक्का सर्वाधिक लोकप्रिय है । मारवाड़ राज्य के ही अधीन कुचामन की टकसाल में भी अटन्नी, चवन्नी तथा इकतीसदा सिक्के ढाले जाते थे । रियासती सिक्कों का युग समाप्त होने के पश्चात् इन सिक्कों का स्थान बिटिशकालीन सिक्कों ने ले लिया।
बूंदी राज्य के सिक्के➜
बूंदी में 1759 से 1859 ईं. तक ‘पुराना रूपया’ नाम का सिक्का चलता था ।1817 ईं. में यहाँ ‘ग्यारह-सना’ रूपया चलन में आया, जो मुगल सम्राट अकबर द्वितीय ( 1806-37 ई. ) के शासन के ग्यारहवें वर्ष को चालू होने का सूचक था । यहाँ ‘हाली’ रूपया भी प्रचलन में था । 1901 ईं. में बूंदी दरबार ने कलदार के साथ ‘चेहरेशाही’ रूपया प्रचलित किया । यह रूपया पूरा चाँदी का था ।ताँबे का सिक्का “पुराना बूंदी का पैसा’ कहलाता था ।1925 ईं. में यहाँ कलदार चलने लगा।
मेवाड़ राज्य के सिक्के➜
मेवाड़ में प्राचीनकाल से ही सोने, चाँदी और ताँबे के सिक्के चलते थे, जिन पर मनुष्य, पशु-पक्षी, सूर्य, चंद्र, धनुष, वृक्ष आदि का चित्र अंकित रहता था ।मेवाड़ में ‘गधिया मुद्रा’ का प्रचलन भी था । महाराणा कुंभा ने चाँदी एवं ताँबे के गोल तथा चौकोर सिक्के चलाए थे, जिन पर कुंभकर्ण, कुँभलमेरू अंकित मिलता हैं ।मुगल सम्राट मुहम्मदशाह ( 1719-48 ईं. ) के काल में मेवाड में चितौड़, भीलवाड़ा और उदयपुर की टकसाल में सिक्के बनते थे, जिनको चितौडी, शाहआलमी, भिलाडी और उदयपुरी रूपया कहते थे।महाराणा भीमसिंह ने अपनी बहिन चंद्रकुँवर बाई की स्मृति मे चाँदोडी रुपया, अठन्नी, चवन्नी दोअन्नी व एक अन्नी चलाई जिस पर फारसी अक्षर अंकित थे ।चांदोडी मेवाड की टकसाल से निर्मित सोने का सिक्का था । मेवाड में ताँबे के सिक्कों को ‘ढीगला”भिलाडी ‘त्रिशूलिया ‘भीडरिया ” नाथद्वारिया ‘ आदि नामों से जाना जाता था । ये विभिन्न आकार तथा तौल एवं मोटाई के होते थे ।द्रम, ऐला मेवाड में चलाये गये सोने/चांदी के सिक्के थे ।
नगर मुद्राएँ➜
नगर या कर्कोट नगर जो उणियारा ठिकाने के क्षेत्र में जयपुर के निकट है । अपनी प्राचीनता के लिए बड़ा प्रसिद्ध है।
राजस्थान जीके क्वेश्चन पार्ट- 1
राजस्थान जीके क्वेश्चन पार्ट- 2
राजस्थान जीके क्वेश्चन पार्ट- 3
राजस्थान जीके क्वेश्चन पार्ट- 4
राजस्थान जीके क्वेश्चन पार्ट- 5
राजस्थान जीके क्वेश्चन पार्ट- 6
अलवर राज्य के सिक्के➜
अलवर राज्य की टकसाल राजगढ में थी यहाँ 1772 से 1876 ईं. तक बनने वाले सिक्के रावशाही रूपया कहलाते थे ।1877 ईं. से अलवर राज्य के सिक्के कलकत्ता की टकसाल में बनने लगे ।यहा के ताँबे के सिके रावशाही टक्का कहलाते थे, जिस पर आलमशाह’ ‘ मुहम्मद बहादुर शाह’ ‘मलका विक्टोरिया , ‘ शिवदान सिंह’ आदि के नाम अंकित रहते थे ।
करौली राज्य के सिक्के➜
करौली में महाराजा माणकपाल ने सर्वप्रथम 1780 ईं. में चाँदी और ताँबे के सिके ढलवाये जिन पर कटार और झाड़ के चिह्न तथा संवत् मय बिन्दुओँ के अंकित होते थे ।
किशनगढ़ राज्य के सिक्के➜
किशनगढ़ में भी शाहआलम के नाम का सिक्का प्रचलित था । किशनगढ़ में 166 ग्रेन का चाँदोडी रूपया भी ढाला गया, जिसका प्रयोग दान पुण्य कार्यो में होता था ।
कोटा राज्य के सिक्के➜
कोटा क्षेत्र में प्रारंभ में गुप्तों और हूणों के सिक्के प्रचलित थे, मध्यकाल में मण्डू और दिल्ली सल्तनत के सिक्के चलते थे । अकबर के राज्य-विस्तार के बाद यहाँ मुगली सिक्के चले । यहां ‘ हाली ‘ और ‘ मदनशाही ‘ सिक्के भी प्रचलन में थे ।
जैसलमेर राज्य के सिक्के➜
मुगलकाल में जैसलमेर में चाँदी का ” मुहम्मदशाही ‘ सिक्का चलता था । जैसलमेर का ताँबे का सिक्का ‘ डोडिया’ कहलाता था ।जेसलमेर के महाराजा अखैसिंह ने अखैशाही सिक्का चलाया ।
झालावाड के सिक्के➜
झालावाड में कोटा के सिक्के प्रचलित थे । यहा 1837 से 1857 ई. तक पुराने मदनशाही सिक्के प्रचलन में थे।
धौलपुर राज्य के सिक्के➜
धौलपुर में 1804 ईं से सिक्के ढलना शूरू हुये । यहाँ के सिक्के को ‘ तमंचा शाही ‘ कहा जाता था, क्योंकि उन पर तमंचे का चिह्न अंकित होता था।
प्रतापगढ़ राज्य के सिक्के➜
प्रतापगढ में सर्वप्रथम 1784 ईं . में मुगल सम्राट शाह आलम की आज्ञा से महारावल सालिम सिंह ने चाँदी के सिक्के ढाले इनके एक तरफ ‘ सिक्कह मुबारक बादशाहा गाजी शाआलम , 1199 ‘ और दूसरी तरफ जर्ब 25 जुलूस मैमनत मानुस ‘ फारसी में अंकित होता था । इस सिक्के को ‘सालिमशाही’ कहते थे।
बांसवाडा राज्य के सिक्के➜
बांसवाड़ा में सालिमशाही रूपये का प्रचलन था । 19०4 ई. में सालिमशाही एवं लक्ष्मणशाही सिक्कों के स्थान पर कलदार का प्रचलन शुरू हो गया।
बीकानेर राज्य के सिक्के➜
बीकानेर में संभवत: 1759 ईं. में टकसाल की स्थब्वपना हुईं और मुगल सम्राट शाहआलम के नाम के सिक्के बनने लगे।
सिरोही राज्य के सिक्के➜
सिरोही का स्वतंत्र रूप से कोई सिक्का नहीं था और न हीं यहाँ कोई टकसाल थी । यहाँ मेवाड़ का चाँदी का भीलाडी रूपया और मारवाड़ का ताँबे का ढब्बूशाही’ रूपया चलता था।
शाहपुरा राज्य के सिक्के➜
शाहपुरा के शासकों ने 1760 ईं. में जो सिक्का चलाया उसे ‘ग्यारसंदिया’ कहते थे ।