Rajasthan Ke shilalekh, Rajasthan Gk Pdf Download,
बिजौलिया शिलालेख- बिजौलिया शिलालेख 5 फरवरी, 1170 ई. को राजस्थान के भीलवाड़ा जिले की बिजौलिया नामक स्थान पर पार्श्वनाथ मंदिर के पास एक चट्टान पर संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण करवाया गया था। बिजौलिया शिलालेख जैन (दिगम्बर) श्रावक लोलाक के द्वारा मंदिर के निर्माण की स्मृति में बनवाया गया था। बिजौलिया शिलालेख का रचयिता गुणभद्र था। बिजौलिया शिलालेख में सांभर व अजमेर के चौहानों की जानकारी दी गई है। बिजौलिया शिलालेख में चौहानों को वत्सगौत्रीय ब्राह्मण बताया गया है। बिजौलिया शिलालेख में वासुदेव चौहान को चौहान वंश का संस्थापक बताया गया है। बिजौलिया शिलालेख के अनुसार वासुदेव चौहान ने सांभर झील का निर्माण करवाया तथा अहिछत्रपुर (नागौर) को अपनी राजधानी बनाया था। बिजौलिया शिलालेख में 12वीं सदी के राजस्थान की धार्मिक, सामाजिक, भौगोलिक व राजनीतिक जानकारी भी मिलती है।
मानमोरी शिलालेख- मानमोरी शिलालेख मानसरोवर झील के निकट चित्तौड़ में एक स्तम्भ पर उत्कीर्ण करवाया गया था। मानमोरी शिलालेख 8वीं सदी का शिलालेख है। कर्नल जेम्स टाॅड ने मानमोरी शिलालेख को इंग्लैंड ले जाते समय समुद्र में डुबो दिया था। मानमोरी शिलालेख के अनुसार भीम को अवन्तिपुर का राजा बताया है। मानमोरी शिलालेख के रचयिता पुष्य तथा उत्कीर्णकर्ता शिवादित्य का उल्लेख भी मानमोरी शिलालेख में मिलता है।
अपराजित का शिलालेख- अपराजित का शिलालेख 661 ई. में राजस्थान के उदयपुर जिले के नागदा गाँव के निकट कुंडेश्वर मंदिर की दीवार पर अंकित किया गया था। अपराजित के शिलालेख में 7वीं सदी के मेवाड़ के इतिहास की जानकारी मिलती है। गोठ मांगलोद का शिलालेख- गोठ मांगलोद का शिलालेख 608 ई. में राजस्थान के नागौर जिले के गोठ मांगलोद गाँव में स्थित दधिमती माता मंदिर में अंकित किया गया था गोठ मांगलोद के शिलालेख के अनुसार गोठ मांगलोद के आसपास का क्षेत्र दाहिमा क्षेत्र कहलाता था।
गंभिरी नदी के पुल का लेख-गंभिरी नदी के पुल के लेख के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी नें चित्तौड़ विजय के बाद गंभिरी नदी पर पुल का निर्माण करवाया था।
देलवाड़ा का शिलालेख- देलवाड़ा का शिलालेख 1439 ई. में लिखा गया था। देलवाड़ा के शिलालेख में टंक नामक प्रचलित मुद्रा का उल्लेख किया गया है।
कुंभलगढ़ का अभिलेख- कुंभलगढ़ का अभिलेख 1460 ई. में राजस्थान के राजसमंद जिले के कुंभलगढ़ दुर्ग में उत्कीर्ण करवाया गया था। कुंभलगढ़ का अभिलेख 5 शिलाओं पर उत्कीर्ण है यह 5 शिलाएं कुंभलगढ़ के कुंभश्याम मंदिर में लगाई गयी थी। कुंभश्याम मंदिर को वर्तमान में मामादेव मंदिर कहा जाता है। कुंभलगढ़ के अभिलेख में बप्पा रावल को विप्रवंशीय ब्राह्मण बताया गया है। डाॅ. गौरीशंकर ओझा के अनुसार कुंभलगढ़ अभिलेख के रचयिता कवि महेश था। कुंभलगढ़ के अभिलेख से महाराणा कुंभा की उपलब्धियों की जानकारी मिलती है। कुंभलगढ़ के अभिलेख में कुंभा की विजय, सेनाओं का मार्ग, निर्माण कार्य का भी उल्लेख किया गया है। कुंभलगढ़ का अभिलेख मेवाड़ के महाराणाओं की वंशावली को विशुद्ध रूप से जानने का महत्त्वपूर्ण साधन है।
आमेर का लेख- आमेर का लेख 1612 ई. में उत्कीर्ण करवाया गया था। इस अभिलेख में आमेर के कछवाहा राजवंश के बारे में जानकारी मिलती है। आमेर के लेख में कछवाहा राजवंश को रघुवंश तिलक कहा गया है। आमेर के लेख में मानसिंह द्वारा जमुवारामगढ़ के निर्माण का उल्लेख है।
कणसवा का अभिलेख- कणसवा का अभिलेख 738 ई. में राजस्थान के कोटा के निकट कणसवा गाँव के शिवालय में उत्कीर्ण करवाया गया था। कणसवा के अभिलेख में मौर्य शासकों की जानकारी मिलती है। राजस्थान के दो मात्र अभिलेखों से ज्ञात होता है की मौर्यों का राजस्थान से संबंध था जैसे- कणसवा का अभिलेख (कोटा), पूठोली का अभिलेख (चित्तौड़)
घोसुण्डी शिलालेख- घोसुण्डी शिलालेख 200-150 ई.पूर्व में राजस्थान में नगरी (चित्तौड़) के निकट घोसुण्डी गाँव में ब्राह्मी लिपि में संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण करवाया गया था। घोसुण्डी शिलालेख में द्वितीय शताब्दी ई.पूर्व के गजवंश के पाराशरी के पुत्र सर्वतात द्वारा अश्वमेघ यज्ञ करने एवं विष्णु मंदिर की चारदीवारी बनाने का उल्लेख मिलता है। घोसुण्डी शिलालेख को सर्वप्रथम पढ़ने वाला व्यक्ति डाॅ. डी. आर. भंडारकर था। घोसुण्डी शिलालेख राजस्थान में वैष्णव (भागवत्) सम्प्रदाय से संबंधित सबसे प्राचीनतम शिलालेख है। घोसुण्डी शिलालेख वर्तमान में राजस्थान के उदयपुर संग्रहालय में स्थित है।
नगरी का शिलालेख- नगरी का शिलालेख दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में राजस्थान में नगरी (चित्तौड़) में ब्राह्मी लिपि में संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण करवाया गया था। घोसुण्डी शिलालेख तथा नगरी शिलालेख को राजस्थान में जुड़वा अभिलेख भी कहा जाता है। नगरी का शिलालेख भी वर्तमान में राजस्थान के उदयपुर संग्रहालय में स्थित है।
चीरवा का शिलालेख- चीरवा का शिलालेख 1273 ई. में राजस्थान के उदयपुर जिले के चीरवा गाँव के एक मंदिर के बाहरी द्वार पर उत्कीर्ण करवाया गया था। चीरवा के शिलालेख में गुहिल वंश के प्रारम्भिक शासकों (बप्पा रावल) की जानकारी मिलती है। चीरवा के शिलालेख में सती प्रथा का उल्लेख किया गया है। चीरवा के शिलालेख में प्रमुख रूप से 13वीं सदी के राजस्थान की राजनैतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक स्थिति का पता चलता है।
किराडू का लेख- किराडू का लेख 1161 ई. में राजस्थान के किराडू (बाड़मेर) के शिव मंदिर में संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण करवाया गया था। किराडू के लेख में परमारों की उत्पत्ती ऋषि वशिष्ठ के आबू यज्ञ से बताई गई है।
जैन कीर्ति स्तम्भ के लेख- जैन कीर्ति स्तम्भ के लेख 13वीं सदी राजस्थान के चित्तौड़ के जैन कीर्ति स्तम्भ में उत्कीर्ण करवाये गये थे। कीर्ति स्तम्भ में उत्कीर्ण तीन अभिलेखों का स्थापनाकर्ता जीजा था।
घटियाला शिलालेख- घटियाला शिलालेख 861 ई. में राजस्थान के घटियाला (जोधपुर) में उत्कीर्ण करवाया गया था। घटियाला शिलालेख में प्रतिहार शासक कक्कुक का उल्लेख है। घटियाला शिलालेख के अनुसार गुर्जर प्रतिहारों का आदिपुरुष हरिश्चंन्द्र ब्राह्मण था तथा गुर्जर प्रतिहारों ने मंडोर में अपना शासन स्थापित किया।
श्रृंगी ऋषि का लेख- श्रृंगी ऋषि का लेख 1428 ई. में संस्कृत भाषा में काले पत्थर पर उत्कीर्ण किया गया था। यह लेख राजस्थान के उदयपुर के एकलिंगजी के पास श्रृंगी ऋषि नामक स्थान पर बरामदे में लगा हुआ है। इस लेख में मेवाड़ के गुहिलों की जानकारी मिलती है। यह लेख महाराणा मोकल के समय का है।
बैराठ नगर अभिलेख- बैराठ नगर अभिलेख राजस्थान के जयपुर से प्राप्त हुआ था। यह अभिलेख मौर्य सम्राट अशोक के समय का है।
नेमिनाथ (आबू) मंदिर की प्रशस्ति- नेमिनाथ मंदिर की प्रशस्ति 1230 ई. में राजस्थान के माउण्ट आबू के देलवाड़ा गाँव (दिलवाड़ा गाँव) में तेजपाल द्वारा उत्कीर्ण की गई थी। नेमिनाथ मंदिर प्रशस्ति से परमार वेशीय शासकों की जानकारी मिलती है। नेमिनाथ प्रशस्ति में आबू के शासक धारावर्ष का भी वर्णन मिलता है। नेमिनाथ प्रशस्ति को लूणवसही प्रशस्ति भी कहा जाता है।
रायसिंह प्रशस्ति- रायसिंह प्रशस्ति बीकानेर के शासक रायसिंह के द्वारा 1594 ई. में राजस्थान के बीकानेर दुर्ग में संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण की गई थी। रायसिंह प्रशस्ति में राव बीका से लेकर रायसिंह तक के राठौड़ शासकों की जानकारी मिलती है। रायसिंह प्रशस्ति के रचयिता जइता नामक जैन मुनि थे। रायसिंह प्रशस्ति में रायसिंह की विजयों एवं साहित्य प्रेम का वर्णन मिलता है। रायसिंह प्रशस्ति के अनुसार बीकानेर दुर्ग (जूनागढ़ या लालगढ़) का निर्माण रायसिंह ने अपने मंत्री कर्मचंद्र की देखरेख में करवाया था। रायसिंह प्रशस्ति को बीकानेर दुर्ग की प्रशस्ति तथा जूनागढ़ प्रशस्ति भी कहा जाता है।
कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति- कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति चित्तौड़गढ़ के शासक महाराणा कुंभा के द्वारा 1460 ई. में राजस्थान के चित्तौड़गढ़ दुर्ग के कीर्ति स्तम्भ में कई शिलाओं पर संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण की गई थी। कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति के रचयिता कवि अत्रि (प्रारम्भ करवाया) व उनका पुत्र महेश भट्ट था। कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति से महाराणा कुंभा के द्वारा लिखी गई पुस्तक तथा उपाधियों की जानकारी मिलती है। महाराणा कुंभा की मालवा विजय के उपलक्ष्य में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया गया जिस पर बाद में प्रशस्ति भी लिखी गई थी। जिसका उल्लेख कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति में मिलता है। कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति में मेवाड़ राज्य के चार भाग बताए गये है जैसे-1. चित्तौड़ 2. अघाट 3. बागड़ 4. मेवाड़
राज प्रशस्ति- राज प्रशस्ति मेवाड़ के शासक राजसिंह के द्वारा 1676 ई. में राजस्थान के राजसमंद जिले की राजसमंद झील की नौ चौकी पाल पर महाकाव्य के रूप में संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण की गई थी। राज प्रशस्ति 25 काले पाषाणों की शिलाओं पर उत्कीर्ण है। राज प्रशस्ति विश्व की सबसे बड़ी प्रशस्ति या विश्व का सबसे बड़ा अभिलेख है। राज प्रशस्ति के रचयिता रणछोड़ भट्ट तैलंग थे। राज प्रशस्ति से जानकारी मिलती है की राजसमंद झील का निर्माण अकाल राहत कार्यों के लिये करवाया गया था। राज प्रशस्ति में मेंवाड़ के सिसोदिया वंश की जानकारी मिलती है। राज प्रशस्ति में महाराणा अमरसिंह व मुगलों के मध्य संधि (अमरसिंह व जहाँगीर के मध्य संधि) का उल्लेख है। राज प्रशस्ति में घेवर माता मंदिर का भी उल्लेख है। राज प्रशस्ति को राजसिंह प्रशस्ति भी कहा जाता है।
हर्षनाथ प्रशस्ति- हर्षनाथ प्रशस्ति 973 ई. में राजस्थान के सीकर जिले के हर्षनाथ के मंदिर में उत्कीर्ण की गई थी। हर्षनाथ की प्रशस्ति में चौहानों की जानकारी मिलती है। हर्षनाथ प्रशस्ति के अनुसार हर्षनाथ के मंदिर का निर्माण अल्लट द्वारा करवाया गया था। हर्षनाथ प्रशस्ति में वागड़ को वार्गट कहा गया है।
रणकपुर प्रशस्ति- रणकपुर प्रशस्ति 1439 ई. में राजस्थान के पाली जिले के रणकपुर गाँव में चौमुखा मंदिर के स्तम्भ पर संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण की गई है। रणकपुर प्रशस्ति में मेवाड़ के शासक बप्पा रावल से लेकर कुंभा तक के शासकों का वर्णन मिलता है। रणकपुर प्रशस्ति में गुहिल को बप्पा रावल का पुत्र बताया गया है। रणकपुर प्रशस्ति में कुंभा की विजय व उपाधियों का वर्णन मिलता है। रणकपुर प्रशस्ति के अनुसार बप्पा रावल एवं कालभोज को अगल-अलग व्यक्ति बताया गया है। रणकपुर प्रशस्ति में धरणक सेठ का उल्लेख करते हुए बताया गया है की चौमुखा मंदिर का निर्माण कुंभा के समय सेठ धरणक शाह ने करवाया था। चौमुखा मंदिर का प्रमुख शिल्पकार तथा रणकपुर प्रशस्ति का रचयिता देपाक (दीपा या देवाक) था।
जगन्नाथ राय प्रशस्ति- जगन्नाथ राय प्रशस्ति 1652 ई. में राजस्थान के उदयपुर जिले के जगन्नाथ मंदिर में काले पत्थरों पर उत्कीर्ण की गई थी। जगन्नाथ राय प्रशस्ति में मेवाड़ के शासकों की जानकारी मिलती है। जगन्नाथ राय प्रशस्ति में जगन्नाथ मंदिर के निर्माण तथा जगन्नाथ राय प्रशस्ति के रचयिता कृष्ण भट्ट का भी उल्लेख मिलता है। जगन्नाथ राय प्रशस्ति में हल्दीघाटी युद्ध तथा कर्णसिंह के समय सिरोंज के विनाश का वर्णन मिलता है।
नाथ प्रशस्ति- नाथ प्रशस्ति 971 ई. में राजस्थान के उदयपुर जिले के एकलिंगजी के मंदिर के पास लकुलीश मंदिर में संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण की गई थी। नाथ प्रशस्ति के रचयिता आम्र कवि थे। नाथ प्रशस्ति में बापा, नागदा नगर, गुहिल तथा नरवाहन राजाओं का वर्णन मिलता है।
सच्चिका माता मंदिर प्रशस्ति- सच्चिका माता मंदिर प्रशस्ति 1179 ई. में राजस्थान के ओसिया (जोधपुर) में सच्चिया माता के मंदिर में उत्कीर्ण की गई थी। सच्चिका माता मंदिर प्रशस्ति में कल्हण एवं कीर्तिपाल का वर्णन मिलता है। तथा कीर्तिपाल को मांडव्यपुर का शासक बताया गया है।
वैद्यनाथ मंदिर की प्रशस्ति- वैद्यनाथ मंदिर की प्रशस्ति 1719 ई. में राजस्थान के उदयपुर जिले की पिछोला झील के निकट सीसारमा गाँव के वैद्यनाथ मंदिर में उत्कीर्ण की गई थी वैद्यनाथ मंदिर की प्रशस्ति में बापा के हारीत ऋषि की कृपा से राज्य प्राप्ति का उल्लेख मिलता है। वैद्यनाथ मंदिर की प्रशस्ति में बापा से लेकर संग्रामसिंह द्वितीय तक का वर्णन मिलता है।
ग्वालियर प्रशस्ति- ग्वालियर प्रशस्ति गुर्जर प्रतिहार शासक मिहिर भोज के द्वारा उत्कीर्ण करवायी गई थी। ग्वालियर प्रशस्ति ग्वालियर शहर के निकट सागर नामक स्थान से प्राप्त हुई है।